_क्षत्रिय धर्म_
_क्षत्रिय धर्म को भूल,राजपूत हम बन गये !_
_छोङे सारे क्षत्रिय सँस्कार, अँहकार मे तन_
_गये !_
_क्षत्रिय धर्म मे पले हुए हम शिर कटने पर भी_
_लङते थे !_
_दिख जाता अगर पापी ओर अन्याय कहिँ_
_शेरो कि भाँती टूट पङते थे !_
_शेरो सी शान,हिमालय सी ईज्जत,और_
_गौरवशाली इतिहास का पूरखो ने हमे_
_अभयदान दिया !_
_जनता के सेवक थे हम लोगो ने भी हमे सम्मान_
_दिया !_
_छूट गई शान, टुट गयी इज्जत पी दारु छोङे_
_सँस्कार !_
_ईतिहास का हमने अपमान किया भूल गई_
_क्या दूनिया सम्मान की खातिर लाखो_
_क्षत्राणियो ने अग्नी श्नान किया !!_
_तो फिर दासी को जोधा बता राजपूत_
_का क्यो अपमान किया !_
_दया हम दिखाते है जब ही तो चौहान ने_
_गोरी को 18 बार छोङ दिया !!_
_पर रजपूती रँग मे रँग जाये राजपूत तो देखो_
_बिन आँखो के चौहान ने गोरी का_
_शिर फोङ दिया !_
_अकेले महाराणा ने दिल्ली कि सल्तनत_
_को हिला दिया !_
_वीर दुर्गादास ने मुगल के सपनो को मिट्टी_
_मे मिला दिया !!_
_अरे हम एक नही रहै तो दुनिया ने हमे भूला_
_दिया !_
_भूल गई क्या दुनिया-_
_हम उनके वँशज है जिन्होने रावण,कँस जैसो_
_को मिट्टी मे मिला दिया !
_क्षत्रिय धर्म को भूल,राजपूत हम बन गये !_
_छोङे सारे क्षत्रिय सँस्कार, अँहकार मे तन_
_गये !_
_क्षत्रिय धर्म मे पले हुए हम शिर कटने पर भी_
_लङते थे !_
_दिख जाता अगर पापी ओर अन्याय कहिँ_
_शेरो कि भाँती टूट पङते थे !_
_शेरो सी शान,हिमालय सी ईज्जत,और_
_गौरवशाली इतिहास का पूरखो ने हमे_
_अभयदान दिया !_
_जनता के सेवक थे हम लोगो ने भी हमे सम्मान_
_दिया !_
_छूट गई शान, टुट गयी इज्जत पी दारु छोङे_
_सँस्कार !_
_ईतिहास का हमने अपमान किया भूल गई_
_क्या दूनिया सम्मान की खातिर लाखो_
_क्षत्राणियो ने अग्नी श्नान किया !!_
_तो फिर दासी को जोधा बता राजपूत_
_का क्यो अपमान किया !_
_दया हम दिखाते है जब ही तो चौहान ने_
_गोरी को 18 बार छोङ दिया !!_
_पर रजपूती रँग मे रँग जाये राजपूत तो देखो_
_बिन आँखो के चौहान ने गोरी का_
_शिर फोङ दिया !_
_अकेले महाराणा ने दिल्ली कि सल्तनत_
_को हिला दिया !_
_वीर दुर्गादास ने मुगल के सपनो को मिट्टी_
_मे मिला दिया !!_
_अरे हम एक नही रहै तो दुनिया ने हमे भूला_
_दिया !_
_भूल गई क्या दुनिया-_
_हम उनके वँशज है जिन्होने रावण,कँस जैसो_
_को मिट्टी मे मिला दिया !